एक बार 2 शिकारी आपस में गप्पे मार रहे थे , और 1 कवी महोदय को पकड़कर अपने अपने शिकार के किस्से बता रहे थे .
पहला : “मैं जंगल में शेर का शिकार करने गया , और मेरी बन्दूक में 1 ही गोली थी और अचानक लेफ्ट और राईट से 2 शेर आ गए ”
दूसरा शिकारी : “अच्छा फिर ?”
पहला शिकारी : “फिर क्या सामने एक नुकीला पत्थर पड़ा था मेने उसको गोली मारी, गोली के 2 टुकड़े हुए और दोनों शेरो को लग गयी और वो मर गए ”
दूसरा शिकारी : “हँ ये भी कोई शिकार हे, मैं बताता हूँ , एक बार मैं शेर को मारने गया , न मेरे पास बन्दूक थी , और मेरे पीछे एक शेर पड़ गया ”
१ शिकारी हैरानी से : “फिर ?”
दूसरा शिकारी : “फिर क्या था मैं भाग के एक बरगद के पेड़ पे चढ़ गया और शेर भी चालक था वो भी लट पकड़ कर ऊपर चढ़ने लगा मेरा डर के मारे बुरा हाल मैंने जैसे तैसे जेब मैं हाथ डाला १ चाकू निकल आया , बस फिर क्या था जैसे ही शेर मुझ तक आया मैंने बरगद की जटा काट दी , शेर धडाम से नीचे गिरा और मर गया .”
दोनों शिकारी ने कवी महोदय की तरफ हिराकत की नज़रों से देखकर कहा कुछ तुम भी सुनाओ .
कवी महोदय भी कुछ कम नहीं थे ..
मैं भी जंगल से जा रहा था कुछ देर अबेर ,
तभी जाने कहाँ आ गया मेरे सामने भी १ शेर ,
शेर ने घूरा , फिर समझ गया इसके पास नहीं है चाकू ,
क्यूंकि शक्ल से हम नहीं लग रहे थे शिकारी या डाकू ,
हमें भी जब कुछ न सूझा तो जेब में डाला हाथ अवश्य ,
निकल पड़ा कविता का परचा, जिसमे छुपा था भविष्य ,
हमने जैसे ही शेर को कविता का शीर्षक सुनाया " मनमोहन के बोल "
शेर मूर्छित होने लगा इससे पहले कि हम सुना पाते " ढोल की पोल "
हमने भी तुरंत भ्रटाचार के अलंकारों से सजी कविता के छंद चलाये ,
शेर मर गया ,शेर मर गया,शेर मर गया बिन चाकू गोली चलाये ...
( शेर जंगल का राजा होता है यारों मगर बेशर्म नहीं )
पहला : “मैं जंगल में शेर का शिकार करने गया , और मेरी बन्दूक में 1 ही गोली थी और अचानक लेफ्ट और राईट से 2 शेर आ गए ”
दूसरा शिकारी : “अच्छा फिर ?”
पहला शिकारी : “फिर क्या सामने एक नुकीला पत्थर पड़ा था मेने उसको गोली मारी, गोली के 2 टुकड़े हुए और दोनों शेरो को लग गयी और वो मर गए ”
दूसरा शिकारी : “हँ ये भी कोई शिकार हे, मैं बताता हूँ , एक बार मैं शेर को मारने गया , न मेरे पास बन्दूक थी , और मेरे पीछे एक शेर पड़ गया ”
१ शिकारी हैरानी से : “फिर ?”
दूसरा शिकारी : “फिर क्या था मैं भाग के एक बरगद के पेड़ पे चढ़ गया और शेर भी चालक था वो भी लट पकड़ कर ऊपर चढ़ने लगा मेरा डर के मारे बुरा हाल मैंने जैसे तैसे जेब मैं हाथ डाला १ चाकू निकल आया , बस फिर क्या था जैसे ही शेर मुझ तक आया मैंने बरगद की जटा काट दी , शेर धडाम से नीचे गिरा और मर गया .”
दोनों शिकारी ने कवी महोदय की तरफ हिराकत की नज़रों से देखकर कहा कुछ तुम भी सुनाओ .
कवी महोदय भी कुछ कम नहीं थे ..
मैं भी जंगल से जा रहा था कुछ देर अबेर ,
तभी जाने कहाँ आ गया मेरे सामने भी १ शेर ,
शेर ने घूरा , फिर समझ गया इसके पास नहीं है चाकू ,
क्यूंकि शक्ल से हम नहीं लग रहे थे शिकारी या डाकू ,
हमें भी जब कुछ न सूझा तो जेब में डाला हाथ अवश्य ,
निकल पड़ा कविता का परचा, जिसमे छुपा था भविष्य ,
हमने जैसे ही शेर को कविता का शीर्षक सुनाया " मनमोहन के बोल "
शेर मूर्छित होने लगा इससे पहले कि हम सुना पाते " ढोल की पोल "
हमने भी तुरंत भ्रटाचार के अलंकारों से सजी कविता के छंद चलाये ,
शेर मर गया ,शेर मर गया,शेर मर गया बिन चाकू गोली चलाये ...
( शेर जंगल का राजा होता है यारों मगर बेशर्म नहीं )
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