Thursday, September 18, 2014

काश वो दिन फिर से लौट आते

याद आते है वो स्कूल के दिन,
ना जाते थे स्कूल दोस्तों के बिन
कैसी थी वो दोस्ती कैसा था वो प्यार
एक दिन की जुदाई से डरते थे जब आता था शनिवार
चलते चलते पत्थरों पर मारते थे ठोकर
कभी हंसकर चलते थे तो कभी चलते थे नाराज होकर
कंधे पर बैग लिए हाथों में बोतल पानी
किसे पता था बचपन की दोस्ती को बिछुडा देगी जवानी
याद आते है वो रंगो से भरे हाथ
क्या दिन थे जब करते थे लंच साथ
छुट्टी की घंटी सुनते ही भागकर बाहर आना
फिर हसंते हंसते दोस्तों से मिल जाना
काश
वो दोस्त आज मिल जाते दिल में बचपन के फूल फिर से खिल जाते
काश वो दिन फिर से लौट आते
काश वो दिन फिर से लौट आते

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